Happy Raksha bandhan 2021 : रक्षाबंधन भाई- बहन का यह पवित्र त्यौहार

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Happy Raksha Bandhan
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Happy Raksha bandhan 2021 : रक्षाबंधन भाई- बहन का यह पवित्र त्यौहार

Happy Raksha bandhan 2021 रक्षाबंधन : हिंदुओ के प्रमुख त्योहारो मे से एक भाई और बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन का त्‍यौहार प्रतिवर्ष श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष 2021 मे 22 अगस्त 2021 को रक्षाबंधन का त्‍यौहार है । रक्षाबंधन के दिन बहिन अपने भाई की कलाई मे राखी बांधती है और भाई भी राखी बांधने पर बहन को उपहार और रक्षा का वचन देता है।

रक्षाबंधन के दिन हर भाई की सूनी कलाई बहन से राखी बंधवाने का इंतजार करती है। रक्षाबंधन के लिए सभी भाई अपनी बहन के पास जाते हैं, जिन बहनों की शादी हो चुकी है उनके भाई उन्‍हें अपने घर लेकर आते हैं। रक्षाबंधन का त्‍यौहार सिर्फ सगे भाई-बहन का नहीं है, यह त्‍यौहार कई बहने जिनके सगे भाई नहीं हैं और कई भाई जिनकी सगी बहने नहीं हैं का भी है। इस दिन मुहबोले भाई भी अपनी मुहबोली बहनों से अपनी कलाई में राखी बंधवाते हैं, उपहार देते हैं और उनकी रक्षा का वचन देते हैं।

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कब से मनाया जाता है रक्षा बंधन

रक्षाबंधन का त्‍यौहार कब से मनाया जाता है यह कोई नहीं जानता। किन्‍तु हिन्‍दुओं के धार्मिक ग्रंथ पुराणों में वर्णन मिलता है। पुराणों के अनुसार देवताओं और राक्षसों के मध्‍य जब युद्ध हुआ था, युद्ध में देवों पर राक्षश हावी हो रहे थे, तब देवराज इन्द्र घबराते हुए बृहस्पति देव के पास गये। वहीं देरराज इंद्र की पत्नि इंद्राणी सब सुन रही थी। इंद्राणी ने मंत्रशक्ति से पवित्र किया हुआ रेशम का धागा अपने पति इंद्र के हाथ पर बाँध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। संयोग से देवराज इंद्र युद्ध जीत गये। त‍ब लोगों को यह विश्‍वास हो गया कि देवराज इन्द्र इस युद्ध में इसी रेशम के धागे की मन्त्र शक्ति से विजयी हुए थे औरउ तभी से श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन उसी प्रकार रेशम का धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। माना जाता है इस दिन बांधा हुआ यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ है।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक अन्‍य कहानी कृष्ण और द्रौपदी की प्रसिद्ध है, ग्रंथों के अनुसार एक समय युद्ध के दौरान भगवान श्री कृष्ण की उंगली में चोट लग गई थी। तभी भगवान श्री कृष्ण की चोटिल उंगली में द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा बाँधा था और इसके बदले भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट के समय सहायता करने का वचन दिया था।

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से रक्षाबंधन

ऐसा माना जाता है कि वास्‍तविक रूप से रक्षाबंधन का त्‍यैहार मनाने की शुरूआत उन बहनों द्वारा की गयी थी, जिनके कोई सगे भाई नहीं थे। इस संदर्भ में यह माना जाता है कि उन्‍होंने अपनी सुरक्षा के लिए इस पर्व की शुरूआत की थी। भले ही इसे मनाने का कारण पहले कुछ भी रहा हो लेकिन रक्षाबंधन के इस त्योहार की मान्यता आज भी बरकरार है। इतिहास में भी इस त्योहार की उत्पत्ति लगभग 6 हजार साल पहले मानी गयी है, जिसके कई साक्ष्य इतिहास के पन्नों में उपलब्‍ध हैं।

इतिहास में उपलब्‍ध साक्ष्‍यों के अनुसार रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती एवं सम्राट हुमायूँ के रूप में दर्ज है। मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच काफी संघर्ष चल रहा था। इन्‍हीं संघर्षों के बीच चित्तौड की  रानी कर्णावती, जो  चितौड़ के राजा की विधवा थीं को गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अत्‍यधिक खतरा था। इस खतरे से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का उनके पास कोई रास्ता उपलब्‍ध नहीं था। रानी कर्णाव‍ती ने उनके पास कोई रास्‍ता न होने के कारण अपनी व अपनी प्रजा की सुरक्षा के लिए रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी और हुमायूँ ने उनकी भेजी राखी स्‍वीकार कर उनकी व उनकी प्रजा की रक्षा की तथा उन्हें बहन का दर्जा दिया था।

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रक्षाबंधन और भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम

भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम के दौरान जन जाग्रति के लिए रक्षाबंधन पर्व का सहारा लिया गया था। बंगाल विभागजन के दौरान श्री रवीन्‍द्रनाथ ठाकुर ने बंगाल विभाजन के विरोध करते समय रक्षाबंधन का सहारा लिया था, इस दौरान उन्‍होंने पारस्पिरिक भाईचारा और एकता बनाये रखने के लिए रक्षाबंधन का प्रयोग किया था।

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी व सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं। Infotab इनकी पुष्टि नहीं करता है)

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